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Wednesday, August 21, 2024

जय आदिवासी युवा शक्ति भानपुरा कलाकोट व


भानपुरा विषयान्तर्गत निवेदन है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ द्वारा अभी हाल ही में पहली अगस्त 2024 को देश में एस.सी.एस.टी. वर्ग के आरक्षण के सन्दर्भ में जो एक अति महत्वपूर्ण निर्णय दिया गया हैए जिसमें एस.सी.एस.टी. वर्ग के लोगों को पुनः उपवर्गीकृत (Sub&classification) किए जाने को मान्यता प्रदान की गई है और इस सम्बन्ध में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में पारित इस आदेश के अनुसार अब राज्य सरकारें एस.सी.एस.टी. वर्ग की सूची के भीतर आरक्षण के लिए उप. वर्गीकरण अर्थात् नई सूची बना सकेंगी। अब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहली अगस्त 2024 के इस निर्णय से 20 वर्ष पूर्व दिया गया निर्णय जो सन् 2004 में पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ द्वारा ई०वी० चिन्नैया बनाम आँध्र प्रदेश राज्य में दिया गया थाए को पलट दिया है जिसमें एस.सी.एस.टी.वर्ग के भीतर किए जाने वाले वर्गीकरण को मान्यता देने से इनकार कर दिया गया था और यह भी कहा गया था कि एस.सी.एस.टी. वर्ग के भीतर उपवर्गीकरण नही किया जा सकता है क्योंकि वे एक ही समरूप अर्थात् समान वर्ग में आते हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2004 के अपने निर्णय में यह भी कहा था कि चूंकि एस.सी.एस.टी. वर्ग के लोगों ने जो अत्याचार सहे हैं वह एक वर्ग और एक समूह के रूप में सहे हैं तथा यह एक बराबर का वर्ग है जिसके भीतर किसी भी प्रकार का वर्गीकरण करना उचित नहीं होगा। मा० सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2004 के निर्णय में यह भी कहा था कि एस.सी.एस.टी. वर्ग के भीतर किसी भी प्रकार का उप वर्गीकरण भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत होगा। माननीय कोर्ट ने अपने वर्ष 2004 के इस निर्णय द्वारा समानता के अधिकार का उल्लंघन करने के कारण आँध्र प्रदेश सरकार द्वारा पारित आंध्र प्रदेश अनुसूचित जाति आरक्षण का युक्तिकरण अधिनियम 2000 को भी रद्द कर दिया था। अपने 2004 के निर्णय में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना था कि यह वर्गीकरण इन जातियों के भीतर अलग.अलग व्यवहार करके समानता के अधिकार का उल्लंघन करेगा और अब माननीय सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की पीठ ने दिनांक 01.08.2024 के निर्णय से सन् 2004 के निर्णय को पलट दिया है इस निर्णय से अनेकों प्रकार के मतभेद और विसंगतियाँ उत्पन्न होंगी। यह निर्णय देने से पूर्व ना तो सन्मान निरिक्षा संबंध में कोई शोध करवाया गया ओना ही न्यायालय के पास डाटाबेस उपलब्ध हैं

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